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सरकार,सांसद,महापौर,विधायक,पार्षद,नगरनिगम,प्रशासन आखिर क्यों ...

ज़रा संभाल के यह भी छोटी गंगा है

 प्रदेश सरकार,सांसद,महापौर,विधायक,पार्षद,नगर निगम,प्रशासन चुप आखिर क्यों

कानपुर गंगा किनारे बसा एक इतिहासिक नगर जो देश विदेश में अपनी अनगिनत उपलब्धियों के लिए विश्व विख्यात है,कभी अपनी औद्योगिक पहचान के चलते भारत का मैनचेस्टर भी कानपुर को पुकारा जाता था,जो कि विभिन्न कारणों से इतिहास के पन्नों में अब धूमिल हो चुका है,परंतु आज भी कानपुर देश की सुरक्षा,उन्नति और विकास में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता है,गंगा किनारे बसे होने के कारण भी कानपुर का अपना अलग ही महत्व है।

विशेष:एक शहर कितनी गंगा

आज हम ले चलते है कानपुर नगर के एक ऐसे क्षेत्र,जहाँ आप एक नही अनगिनत छोटी छोटी गंगा के दर्शन कर सकते है,परंतु इन छोटी छोटी गंगा के दर्शन के पश्चात मन के भाव और श्रद्धाभाव क्या आता है,व्याख्यान न ही किया जाए तो बेहतर है।
बात कर रहे है कानपुर नगर के टी पी (ट्रांसपोर्ट)नगर की,जहाँ देश की एक प्रसिद्ध मोटर वाहन कंपनी जिस के द्वारा छोटे बड़े सभी प्रकार के वाहनों का निर्माण करता है को जहाँ अपनी आठ से अठ्ठाहिस चक्का वाहनों के उत्पादन पर देश विदेश में प्रशंसा से गर्व की अनुभूति होती होगी वही टी पी नगर के भ्रमण पर अगर गलती से उसही वाहन उत्पादक कंपनी का कोई अधिकारी निकल जाए तो बड़े वाहनों पर तो शायद नही पर छोटे वाहनों और वाहन चालकों की पीड़ा की अनुभूति कर रो रो कर एक और गंगा को प्रवाहित किये बिना रहे नही पायेगा।

सुनने में काफी हास्यपद परंतु शतप्रतिशत सत्य,टी पी नगर में रहने गुज़रने और कार्य करने वालो के हाल पीड़ा दायक है,सावधानी हटी दुर्घटना घटी,चोट चपेट तो छोटी मोटी बात है,बात तो जान तक बन आती है,राजस्व पेट भर कर सुविधा ढ़ेले भर भी नही,ज़िम्मेदारी किसी की है,कौन है ज़िम्मेदार सब संसाधनों का सब जानते है,बीच कुछ दबे कुचले पीड़ितों द्वारा आवाज़ भी उठाई जाती रही है,सरकारी आश्वासन की घुट्टी की दो चार ख़ुराक भोली भाली जनता का मुंह बंद करने के लिये काफी होते है,बाकी काम बंदर बाट की राजनीति की भेंट चढ़ जाता है,क्योकि कही न कही सभी व्यापारी संघठनों का राजनीतिकरण हो चुका है।ठगा जाता है कौन रोज़ कुँवा खोद पानी निकालने वाले अर्थार्त दिहाड़ी मजदूर पल्लेदार,ट्रांसपोर्ट मालिक को तो स्वयं बोझा ढोना नही होता,इसका या कतई मतलब नही की उनको परेशानी नही पर ढ़ोल में पोल (मानकों की अनदेखी) के चलते मुँह बंद रखने में ही भलाई समझी जाती है,गरीब आम जनता बत्तर हालात में मरे या चोटिल हो काम चलना चाहिए ऊपर से बीच तक।

सवाल पापी पेट का:

 एस गरीब पल्लेदार यहां पर अपने लिए दो जून कि रोटी के लिए आता हैं लेकिन वो वहां पर आकर के देखता हैं कि वो मजदूरी अगर करें तो कैसे करे सडकें तो तालाब मई हो गई हैं,वर्तमान परिस्थितियों में व्यापार में आई भारी गिरावट के चलते काम मिलना ही मुमकिन नही है,सरकारी वादों पर से भरोसा उठ चुका है पर उस ऊपर वाले पर आस्था में कोई कमी नही है,उसका वादा अटल है मेहनत करने वाले तू कोशिश कर फल में दूँगा,गरीब पल्लेदारों को रोज़ संघर्ष कर अपने परिवारों का पालन पोषण करने का साहस देता है,पर मनुष्य योनि कभी न कभी कही न कही हिम्मत और साहस डगमगा ही जाता है।

टी पी नगर में पूरे समय आवागमन काफी कष्टकारी है,पर बरसात में तो परिस्थितियां बहुत भयावक हो जाती है सब के लिए चाहे वहां से किसी भी कार्य हेतु गुजरना हो या किसी कार्यवश जाना किसी सज़ा से कम नही,पर जिनका जीवनयापन ही उस विकट परिस्थितियों वाले क्षेत्र पर निर्भर हो उनकी पीड़ा को शब्दों के माध्यम से इस लेख द्वारा हम संबंधित ज़िम्मेदार व्यक्तियों तक पहुचाना चाहते है इस आशा के साथ कि शायद उनके कान पर जू रेंग जाये,शायद कुछ सुधार ही हो जाये।
 

दर्द की दवा भूख:

पल्लेदारों द्वारा गाड़ी से माल उतारना,ट्रांसपोर्ट तक सुरक्षित पहुचने की ज़िम्मेदारी होती है जिसका उनको मेहनताना ट्रांसपोर्ट कंपनी मालिक द्वारा दिया जाता है,हर वस्तु का भार भिन्न भिन्न होता है जिस का शुल्क भी नग एवं भार(वज़न) अनुसार होता है,शारीरिक रूप के साथ ट्रांसपोर्ट कंपनियों में कार्य करने वाले पल्लेदार मानसिक रूप से भी हालात अनुसार मज़बूत होते है,हालात कैसे भी हो वह अपना काम पूरी लगन और निष्ठा के साथ करते है,सारे दुख दर्द भूल कर,क्योकि सवाल पापी पेट का है और दर्द की दवा भूखे पेट नही ली जाती।।

बात मुद्दे की:

टी पी नगर में पल्लेदारों का मुख्य कार्य गाड़ी अपलोडिंग और डाउन लोडिंग(उतारना और चढ़ाना) का है,असामान्य बत्तर हालात में रोज़ी रोटी कमाना उनकी आदत में शुमार हो गया है,पर बरसात में उनको भी अपनी आदत के विपरीत किसी भी अप्रिय घटना का डर सताता रहता है,कही किसी भी कारणवश अगर चोटिल हो गए तो क्या होगा कौन परिवार का पालन पोषण करेगा(ट्रांसपोर्ट कंपनियों में कार्य करने वाले 80% पल्लेदार प्रतिदिन दिहाड़ी मज़दूरी पर काम करते है)किसी भी प्रकार की ज़िम्मेदारी किसी भी ट्रांसपोर्ट कंपनी द्वारा नही ली जाती न ही किसी सरकारी मदद का प्रावधान(व्यक्तिगत स्तर पर कुछ मदद ट्रांसपोर्टर द्वारा की जाती है),फिर भी मरता क्या न करता हालात से समझौता कर माल लेकर गहरे गड्ढों में भरे गंदे पानी में तैरकर जाने को मजबूर है यह जानते हुए भी बीमारियों(चर्म रोग) संग किसी भी दुर्घटना(फिसलना,हड्डी टूटना,चोटिल होने आदि) को दावत दे रहा है,कौन लेगा ज़िम्मेदारी कौन करेगा परिवार का पालन पोषण कहा से इलाज का ख़र्च आएगा,है कोई जवाब कहा है चुनावी मेढ़क गंगा में या उन्ही जानलेवा गड्ढो में कही छुपे बैठे है दुर्घटना होने पर विधवा विलाप कर घड़याली आंसू बहाने को तैयार।

सरकारी जुमले का सच:

एक तरफ सरकार कहती है कि गढ्ढा मुक्त सड़के गढ्ढा मुक्त प्रदेश,पर धरातल के सच का एक उदहारण कानपुर का टी पी नगर प्रदेश में हमारे सर्वे अनुसार प्रदेश की अन्य ट्रांसपोर्ट नगर इकाइयों में सबसे दर्दनीये है जहाँ मुक्त तो नही गढ्ढा युक्त सड़के नही उस से भी कही अधिक में तब्दील हो चुकी है,रही सही कसर अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुकी है,फुटपाथ को ट्रांसपोर्टर्स द्वारा अपने माल और अवैध निर्माण द्वारा घेर रखा है,कही कोई गुंजाइश नही निकलना है तो गंदगी चारो और फैली हुई कीचड़ और दुर्घटना को दावत देते गहरे गड्ढे,कोई बचाव का रास्ता नही,गाड़ी घोड़ा तो दूर पैदल आवागमन भी दूभर,समय समय पर खानापूर्ति के लिए सरकारी बुलडोज़र अपनी उपस्थिति दर्ज करता रहता है अतिक्रमण अभियान के नाम पर परंतु ट्रांस्पोर्टरों के बुलंद हौसले तो कुछ और ही दर्शाते हैं दाल में सब कुछ काला है,क्यो महापौर,नगर निगम अधिकारियों को कुछ नज़र नही आता सम्बंधित क्षेत्र का थाना क्या सो रहा है सारा कानून नियम गरीब जनता के लिए है,क्यो सब धृतराष्ट्र की भूमिका का निर्वाहन पूरी ईमानदारी के साथ कर रहे है,कढ़वी बात सब कुछ दिखता है ,सारी सूचना है पर यहाँ तो खेल सेटीइंग गेटिंग है जिसका उदहारण टी पी नगर मे पापुलर धर्म काटे के ठीक सामने कार्नर मे अभी एक अवैध निर्माण किया जा रहा है।

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