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था हूं और रहूंगा लिखता सच फ़र्क़ क्या रंग स्याह या सुर्ख़ ...

हौसलें की बानगी है,
हक़ की बात लिखता हूं,
 बार बार लिखता हूं हर बार लिखता हूं,

क्या ख़ामोश करोगें आवाज़ मेरी,पेशे से नही कर्म से क़लमकार हूं,

स्याही से नही लहू से अखबार लिखता हूं...

दौर ए ज़ालिम के मुताबिक़ पत्रकार अपने ज़मीर का सौदा कर समाज में कर्क रोग की तरह फ़ैली बुराइयों एवं विसंगतियों पर भ्रष्ट राजनेताओं और अफसरों की भांति धृतराष्ट बन जाए,देश का चौथा स्तम्भ अपनी सच्ची पहचान बचाने के लिए वर्तमान में किस प्रकार संघर्ष कर रहा है,निरंतर पत्रकारों को मिल रही धमकियां और हमले उसका का उदहारण है,या तो बिक जाओ या मिट जाओ,निःस्वार्थ सेवा भाव से राष्ट एवं समाज हित में कार्य कर रहे निष्पक्ष सच्चे ईमानदार पत्रकारों का समय समय पर किसी न किसी प्रकार उत्पीड़न जिस प्रकार हो रहा है वह वर्तमान के साथ भविष्य के लिए भी अशुभ संकेत है,अगर समय रहते सरकारें एवं देश और समाज की उन्नति प्रगति की बात करने वाले नही जागें तो वो दिन दूर नही जब अखबार भी छपेगा खबरें भी बनेंगी पर सच्चाई अपना अस्तित्व सफेद काग़ज़ पर मात्र काले रंग की लकीरों तक सिमट कर रह जायेगा क्योंकि अख़बार लिखकर नही बिक कर लिखा जाएगा,जो समाज के किसी भी वर्ग के हित में नही होगा,सुनहरे अक्षरों में लिखें जाने वाला गौरांवित इतिहास पत्रकार उत्पीड़न के चलते त्रासदी की पठकथा का साक्षी बन भविष्य का अंधकारमय अध्याय बनने पर विवश हो कर रह जायेगा।

फिर मिली धमकी


देश का चौथा स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकार का आज खुदा और भगवान दोनों रूठा है क्योंकि ये वो बिरादरी है जिससे कभी ग़लत काम करनें वालों की पो पो ढीली होती थी पर आज स्तिथि बिल्कुल उलट है आज पत्रकार का अपना वजूद खतरे में है एक अदना सा स्टेशन का दलाल व अवैध वेंडर्स का मसीहा सुनील राठौर (पोटे)ने एक और पत्रकार कों खबर छापने की एवज में जान से मारने की धमकी दी है ऎसा नही है के ये किसी  पत्रकार कों  जान से मारने की पहली धमकी है इससे पहले एक  पत्रकार कों  उसके घऱ के नीचे लोग गोलियों से भून के चले गये राम रहीम जैसे पापी कों भी एक पत्रकार ने अपनी जान देकर जेल पहुंचाया ऎसे कई पत्रकारो की कहानी है जो जालिम समाज के गलत लोगों की गोली का शिकार हुए और आज भी हमारी सरकार अपराधियों की टांग पंचर करनें में लगीं है। कहना यहां ये है की क्या अब वो वक्त आ गया है जब कलम की स्याही का रंग वाकई लाल हो जायेगा यानी पत्रकार के खून की स्याही कलम में डाली जायेगी क्यों कोई सरकार पत्रकार की सुरक्षा का कानून नही लाती क्या पत्रकार यूं ही गाजर मूली की तरह काटा जायेगा आखिर कब तक पत्रकार से खून की होली फागुन के पहले ही खेली जायेगी ?

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