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5 हजार सुरक्षाकर्मियों के हवाले 1.06 लाख कैदी ...

जेल में गैंगवार का बड़ा कारण

चित्रकूट जेल में 14 मई को हुए गैंगवार में दो कुख्यात कैदियों की हत्या की वारदात को रोक पाने में नाकाम जेल प्रशासन और पुलिस अब समीक्षा करने में जुट गए हैं। शुक्रवार को पूरे दिन मीटिंगों का दौर चलता रहा। अपर मुख्य सचिव गृह और डीजी जेल ने घंटों मंथन किया। इसमें एक अहम बात सुरक्षाकर्मियों की बेहद कमी सामने आई।

प्रदेश भर की जेलों में शुक्रवार तक कुल 106724 कैदी थे। लेकिन इन्हें नियंत्रित करने के लिए डीआईजी से लेकर जेल वार्डर तक की संख्या महज 5233 है। जेल के भीतर सुरक्षा व्यवस्था संभालने वाले डिप्टी जेलर और बंदी रक्षकों की तादात केवल 5078 है। डीजी जेल आनंद कुमार कहते हैं कि जेल सुरक्षा में मैनपॉवर की कमी लंबे समय से चल रही है। 3236 जेल वार्डरों की भर्ती प्रक्रिया पिछले साल से चल रही है जो कोरोना की वजह से पूरी नहीं हो पा रही। जितना संख्या बल है उसमें हालात को बेहतर रखने का प्रयास किया जा रहा है।

ब्रिटिश शासन का आदेश अब तक लागू

ब्रिटिश शासनकाल में जेलों की स्थापना के साथ कारागार सुरक्षाकर्मियों के पद भी सृजित किए गए। विभागीय जानकारों का कहना है कि 1850 के आसपास यूपी में करीब 50 जिले थे। हर जिले में एक जेल बनाई गई और उसमें कैदियों की संख्या के हिसाब से सुरक्षाकर्मी रखे गए। आजादी के बाद सुरक्षाकर्मियों की उसी संख्या को शासन ने जेल विभाग के लिए स्वीकृत पद मान लिया।
इसके बाद जिले बढ़े और जेलें बनती गईं। इनमें कैदियों की भीड़ भी लगातार बढ़ती गई, लेकिन सुरक्षाकर्मियों की संख्या नहीं बढ़ाई गई। करीब 50 साल पहले सरकार ने जेल सुरक्षा के लिए डीआईजी से लेकर वार्डर तक के 9473 पद स्वीकृत किए जो अभी तक लागू हैं। लेकिन विभाग के प्रति सरकार की उदासीनता का आलम यह है कि वर्षों पुराने इन स्वीकृत पदों को भी नहीं भरा जा सका। मौजूदा समय में प्रदेश में 71 जेलें है और इनमें 106724 कैदी हैं। लेकिन इनको कंट्रोल करने के लिए 5078 डिप्टी जेलर और वार्डर हैं।

मुठ्ठी भर जवानों की वजह से कैदियों में उठती रहती है विद्रोह की आवाज

बागपत जेल में जुलाई 2018 में माफिया मुन्ना बजरंगी की हत्या के बाद चित्रकूट जेल गैंगवार जेलों में हुई वारदातों के इतिहास में बड़ी घटनाएं मानी जा रही हैं। लेकिन जेलों में कैदियों के बीच गैंगवार और हत्याएं अब आम बात हो चली है। पिछले साल 2 अप्रैल को इटावा जेल में कैदियों के विद्रोह के बीच कानपुर के कुख्यात अपराधी और डी-2 गैंग के सदस्य राशिद उर्फ मोनू पहाड़ी की हत्या कर दी गई थी।
2016 में इलाहाबाद की नैनी जेल में कैदियों ने पूरे जेल स्टाफ को बंधक बनाकर पीटा था। इससे पहले 2013 में बस्ती जेल के कैदियों ने विद्रोह कर दिया। जेल प्रशासन की सूचना पर बाहर से फोर्स समय से नहीं पहुंच पाई तो जेल अधिकारियों को फायरिंग करनी पड़ी जिसमें एक कैदी की मौत हो गई। इसी बस्ती जेल मे 2011 में कैदियों ने कब्जा जमा लिया और रसोई घर में जाकर गैस सिलिंडरों में आग लगा दी। इनपर काबू पाने के लिए जेल अधीक्षक केशरवानी ने गोली चलाई जिसमें एक कैदी मारा गया।

सुरक्षा बल की कमी से जेलों में चलती है माफियाओं की सरकार

जेल में सुरक्षा बल की कमी और पुराने जंग लगे हथियारों की वजह से अंदर माफियाओं की सरकार चलती है। विधायक राजू पाल के हत्यारोपी इलाहाबाद के माफिया अतीक अहमद का कई जेलों पर राज चलता था। वह जेल में हर वह सुविधाएं लेता था जिसकी उसे जरुरत होती थी। इसी तरह पूर्वांचल के माफिया रमेश सिंह काका का लंबे समय तक बनारस और गोरखपुर की जेल पर कब्जा रहा। मुन्ना बजरंगी के हत्यारोपी सुनील राठी का मेरठ सहित पश्चिमी यूपी की जेलों पर काफी समय तक राज चला। खुद मुन्ना बजरंगी जिस भी जेल में बंद रहा वहां का जेल प्रशासन उसकी निगरानी कम चाकरी ज्यादा करता था।

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