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लॉकडाउन बढ़ा मतलब प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें भी बढ़ीं ...

इस रात की सुबह का इंतज़ार....

"काम बंद होने के बाद एक हफ्ता रुके। कुछ खाने को नहीं मिला। घर में राशन नहीं, बाहर लेने भी जाओ तो पुलिस मारती थी, क्या करते कब तक वहीं मरते।'

"महामारी से नहीं भूखे मर जाएंगे हम लोग,साहब जाने दो।" "साइकिल रिक्शा से 1,400 किमी का सफर, जेब और पेट दोनों खाली।"

"चाय बागानों में काम करने वाले 12 लाख मजदूरों के सामने रोजी-रोटी का संकट।" बुंदेलखंड वापस आए मजदूरों की चिंता, अब घर कैसे चलेगा।" लॉकडाउन बढ़ा मतलब प्रवासी मजदूरों की मुश्किलें भी बढ़ीं।"

उपरोक्त प्रश्न वह है जो मात्र सवाल नही, एक समस्या जो वर्तमान के साथ हमारे भविष्य पर भी प्रश्रचिन्ह लगा हम को आत्ममंथन करने को विवश करते है कि आज इकीसवीं सदी के भारत में हम कहा टिकते है ऐसी किसी भी आपदा के समय क्या है हमारा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन। क्यो मजबूर है मज़दूर, गरीब मध्यवर्ग, क्या सारा कायाकल्प सरकारी कागज़ों तक सीमित है। सत्ता पक्ष एवं विपक्ष आरोप प्रत्यारोप की राजनीति में व्यस्त था, है और शायद रहेगा परंतु अब समय आ गया है जनता को स्वयं एक ऐसे सर्वक्षेष्ठ भारत का निर्माण करने के लिए आगे आना होगा जहां मज़दूर न मजबूर हो और न ही अपने ही देश में अप्रवासी।

उत्तर प्रदेश की सड़कों पर पैदल नजर आ रहे प्रवासी मजदूरों की आंखों में आंसू है और पैरों में छाले। कोरोना वायरस महामारी से जहां पूरा देश लड़ रहा है तो वही प्रवासी मजदूर इस महामारी के साथ ही भूख से भी लड़ रहे हैं।

लॉकडाउन के चलते देश के विभिन्न हिस्सों से पैदल/बस/ट्रक/ऑटो/लोडर/चार पहिया/दो पहिया वाहनों/साइकिल आदि साधनों द्वारा अपने घरों को लौट रहे मजदूरों ने कई सड़क हादसों के बाद सरकार की ओर से लगाई गई पाबंदी को लेकर हताश होकर अब हंगामा करना शुरू कर दिया है।

मजदूरों का कहना है कि वे भूखे प्यासे अपना रास्ता काटने को विवश है, आम जनता द्वारा उनको हाईवे पर तो सहायता प्राप्त हो रही है जिन से उनका सफर कुछ आसान हो जाता है परंतु सरकार द्वारा उनके लिए कोई व्यवस्था नहीं की जा रही है और अब पैदल भी नहीं चलने दिया जा रहा है। गंतव्य तक पहुंचने के लिए वाहन भी उपलब्ध नहीं कराए जा रहे हैं। मात्र दिखावा हो रहा है, सरकार हमें जीते-जी मार देने पर उतारू है।

बीते शनिवार को औरैया में हुए भीषण सड़क हादसे के बाद सरकार ने श्रमिकों को जहां हैं, वहीं रोककर खाने-पानी की व्यवस्था के निर्देश दे दिए थे, जिसके बाद विभिन्न राज्यो से आ रहे मजदूरों को सभी जनपद की सीमा रोक दिया गया था। पुलिस वाले अपने फर्ज के आगे मजबूर हैं तो वही यह मजदूर अपने घर जाने के लिए मजबूर हैं।

ऐसी घटनाओं की लंबी है फेरिस्त, जिन में से कुछ आँखों देखी घटनाओं को हम आप के संज्ञान में लाते है

घटना क्रम 1 - कानपुर हाईवे पर देखने को मिला प्रवासी मजदूर परिवार पुलिस वालो से हाथ जोड़ कहते नजर आए साहब जाने दो महामारी से नहीं भूख से मर जाएंगे। यह बात सुन पुलिस वाले भी भावुक हो गए। लेकिन फर्ज के आगे मजबूर होकर वे इन्हें रोकते हुए नजर आए। ऐसे ही कुछ प्रवासी मजदूरों से पोल खोल न्यूज़(पी के) के संवाददाता ने बातचीत की।

हाईवे पर मौजूद दोनो प्रवासी मजदूर अपने परिवार के साथ  सड़क पर पुलिस वालों के आगे हाथ जोड़े बैठे थे। इनसे जब हमने पूछा तो यह सब रोने लगे और बोले साहब मदद कर दो। पुलिस वालों से कह दो हमें जाने दें, हम महामारी से तो नहीं पर भुखमरी से मर जाएंगे।

दोनों ही परिवार ने बताया कि महाराष्ट्र में रहकर एक फैक्ट्री में मजदूरी का काम करते थे। लॉक डाउन के चलते फैक्ट्री बंद हो गई और चालू होने की अब कोई उम्मीद भी नहीं दिख रही थी। हमारे पास खाने तक के पैसे नहीं बचे। हमारे पास घर जाने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था।

सभी उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी अपने गांव के लिए निकल पड़े। हाईवे पर एक डीसीएम में बैठे और रास्ता तय करने लगे। साहब इतने भी पैसे नहीं थे कि अपने बच्चे को रास्ते में कुछ ठीक से खिला पाता, पानी पीकर इन सभी को अपने घर वापस ले जा रहा था। तभी अचानक हाईवे पर लगी पुलिस ने हम सभी को डीसीएम से नीचे उतार कर खड़ा कर दिया और रुकने को बोला। साहब हमने बहुत हाथ पैर जोड़े लेकिन पुलिस वालों ने एक भी न सुनी।

साहब जेब में मात्र ₹ 200 बचे हैं अब आप बताओ क्या खाएं और क्या बच्चों को खिलाएं और कैसे घर ले जाएं। बड़ी मिन्नत के बाद डीसीएम वाले ने हमें बैठाया था।

घटना क्रम 2 - ऐसा ही दूसरा वाक्या रहा दो नाबालिग़ भाईयो का जो पढ़ने लिखने की उम्र में रेहड़ी लगाने को मजबूर है वह भी अपने घर परिवार से सैकड़ो मील दूर, हमारे संवाददाता द्वारा जब उन से पूछा गया तो दर्द और परेशानी उन की आंखों में छलक आई, रोते हुए उनमें से एक ने बताया कि उनके परिवार में 4 सदस्य और है जिन के भरणपोषण की ज़िम्मेदारी उन दोनों पर ही है, पिता की 3 वर्ष पूर्व हादसे में मौत के पश्चात दोनो भाईयो द्वारा अपने 3 छोटे भाई बहनों और माता की ज़िम्मेदारी उठाई जा रही है, लॉक डाउन के कारण अब कोई काम न होने के कारण अब घर वापस जा रहे है परंतु पुलिस आगे नही जाने दे रही है।

घटना क्रम 3 - अब हमारी टीम और आगे बढ़ी तो दो पहिया वाहन पर सवार दो युवक अपना सामान लादे कानपुर की तरफ बढ़ते दिखे, जिनको हाथ के इशारे से जब हमने रुकने का इशारा दिया तो पहले वह घबराए, परंतु कुछ आगे जाने पर स्वयं रूक गए। उन से बात करने पर हमारे संवाददाता को पता चला कि दोनो मित्र है एक कुशीनगर से नूर अंसारी तो दूसरा प्रयागराज विजय कुमार। दोनो दिल्ली में साथ साथ काम करते है पर लॉक डाउन के चलते स्थिति बहुत खराब हो गई थी तो मजबूरी में घर वापसी कर रहे है। उन से बातचीत के दौरान जब हमारे संवाददाता द्वारा उनके विपरीत धर्मो के बारे मे पूछा गया तो जो उत्तर उन्होंने दिया वह हिंदू मुस्लिम की राजनीति और बात बंटवारा करने वालो के मुँह पर तमाचा था साथ ही हमारी गंगा जमुनी तहज़ीब की एक बानगी भी "ज़म ज़म में मिला पीये गंगा का पानी हम वो हिंदुस्तानी" बात ख़त्म।

घटना क्रम 4 - इस ही कड़ी में हमारी टीम द्वारा और आगे जा कर स्थिति का जायज़ा लिया तो हालात देख हमारे पैरों तले जमीन खिसक गई।

दिल्ली से पूर्णिंया (करीब 1400 किलोमीटर) का सफर साइकिल वाले रिक्शा से, वो भी दो लोगों को बैठाकर खींचते हुए। सोचकर देखिए चक्कर आ जाएगा। लेकिन अशोक यादव (45 साल) अपने एक मजदूर साथी के साथ दिल्ली से अपनी मंज़िल की ओर निकल चुके हैं। वो दिल्ली में आनंद बिहार के आसपास रिक्शा चलाते थे। कोरोना का संक्रमण रोकने के लिए पूरे देश में लॉकडाउन किया गया तो अशोक जैसे लाखों मजदूरों ने दिल्ली छोड़ दी।

हाईवे पर दौड़ रहा लगभग हर दूसरे वाहन का शोर प्रवासी मज़दूरों के दर्द से कराहती आवाज़ को और प्रखर कर रहा था, छोटा बड़ा कोई वाहन ऐसा नही था जिस में लंबी लंबी दूरी तय कर भेड़ बकरियों की तरह भूखे प्यासे प्रवासी भरे न आ रहे हो, आगे न जाने की अनुमति के साथ जिनको पुलिस द्वारा चेक नाके पर रोका जा रहा था, जहाँ जनता समाजसेवी संस्थाओं एवं प्रशासन द्वारा इनके भोजन की व्यवस्था की गई थी।

वहीं कुछ पुलिस वालों ने नाम ना छापने की बात कहते हुए बताया हम सभी का मकसद इन्हें परेशान करना नहीं है। हम लोग भी इनके आंसू देख नहीं पा रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों को देखकर दया आ रही है। हमने इन्हें नीचे उतारा जरूर है लेकिन वही कर रहे हैं जो दिशानिर्देश हमें मिले हुए हैं।

पुलिस वालों ने कहा कि हम अच्छे से जान रहे हैं कि यह प्रवासी मजदूर बहुत परेशान हैं लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते। बस इतना ही है कि जब तक यहां पर हैं इनके खाने का इंतजाम हम सब के सहयोग से करवा रहे हैं।

अब इन सब परिस्थितियों का कौन ज़िम्मेदार है और किसकी है नैतिक जवाबदेही यह तो आने वाले समय के साथ वही वर्ग तय करेगा जिसको कोरोना के खौफ़ के साथ भुखमरी परेशानियों आपने के खोने की पीड़ा का एहसास बारंबार इस भयावक वर्तमान समय की याद दिलाता रहेगा।

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