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सरहद पर शहीद होता जवान, नेता करते अपनी देशभक्ति का गुणगान ...

पुलवामा शहीद की उपेक्षा पर रोते हैं पिता

14 फरवरी 2019 को हुए उस हमले में CRPF के 40 जवान शहीद हो गए थे। जिस परिवार का बेटा देश के लिए शहीद हुआ हो, उसके जख्म भरने में दशकों लग जाते हैं, लेकिन शहीद की चौखट से बाहर कदम रखते ही कैसे देश के जिम्मेदारों की आंखों का पानी सूख जाता है, इसे जानना-समझना हो तो भागलपुर के मदारगंज आईए। आज ही के दिन 14 फरवरी को पुलवामा हमले में इस गांव ने भी अपना एक लाल खोया था। दो साल पहले जब कान्सटेबल रतन ठाकुर पुलवामा में शहीद हुए थे तो दर्जनों विधायक, सांसद और मंत्री आए थे, सबने अनगिनत वादे किए थे, लेकिन शहीद के पिता राम निरंजन ठाकुर आज भी गांव में उन वादों के पूरे होने की बाट जोह रहे हैं। उनका कहना है कि जब शहादत की दूसरी बरसी नजदीक आई है तो गांव में बनने वाले गेट का काम तेज किया जा रहा है। 

ज़िला अधिकारी के यहां धूल फांक रहा जमीन बंदोबस्ती का कागज

सरकार ने शहीद के परिवार और गांव के लिए दो साल में क्या किया, यह सवाल पूछने पर पिता का दर्द छलक पड़ता है। अपने पीछे दो मासूम बच्चों को छोड़ कर गए देश के रखवाले के परिवार के लिए अब तक कुछ भी नहीं हुआ है। शहीद अर्धसैनिक बल की विधवा के नाम से 5 एकड़ जमीन की बंदोबस्ती का प्रावधान है, लेकिन पिता निरंजन ठाकुर ने बताया कि ज़िला अधिकारीको आवेदन भी दिया, लेकिन कागज कहां धूल फांक रहा है, यह भी कोई बताने वाला नहीं है। पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए कांस्टेबल रतन ठाकुर दो भाइयों में सबसे बड़े थे। परिवार के भरण-पोषण के अलावा पिता के बुढ़ापे का सहारा थे। दो अनाथ बच्चे और विधवा पत्नी की उजड़ी हुई दुनिया को अब तक किसी ने संवारने की पहल नहीं की है।

शहीद के नाम पर नहीं हुआ स्कूल का नामकरण, आज वहां मवेशी चर रहे

कैसे लोग वादा कर के भूल जाते हैं, इसका जिक्र करते हुए निरंजन ठाकुर कहते हैं कि DDC ने आश्वासन दिया था कि जिस स्कूल में रतन ठाकुर पढ़े थे, उसका नामाकरण उन्हीं के नाम पर किया जाएगा, लेकिन आज यहां मवेशी चर रहे हैं, चारों तरफ गंदगी है। भूतपूर्व विधानसभाध्यक्ष सदानंद सिंह ने कहा था कि शहीद का स्मारक वे खुद बनवाएंगे, लेकिन गांव में कहीं कोई स्मारक नहीं बना है। इतना कहकर डबडबाई आंखों के आंसू पोछते हुए निरंजन ठाकुर कहते हैं- जब तक यह देह इस धरती पर है, अपने बेटे की शहादत की बरसी खुद ही मनाता रहूंगा।

पिता बोले-'हम जैसे मजदूर का बेटा सीने पर खाता है गोली'

मौजूदा व्यवस्था से नाराज शहीद के पिता ने रोते हुए कहा कि बड़े उद्योगपति, सेठ-साहूकार और सफेदपोश का बेटा नहीं, बल्कि हम जैसे गरीब-मजदूरों का बेटा देश के लिए गोली खाने वालों की कतार में सबसे आगे खड़ा रहता है। वह देश की रखवाली करता है, तभी सब चैन से सोते हैं। देश पर कुर्बान होने वाले का परिवार, उसका गांव आज किस हाल में है, इसे देखने वाला कोई नहीं है। देश महफूज रहे, यह सोचकर जागते रहने वाले जवानों की शहादत के बाद कैसे लोग अपनी जिम्मेवारी से आंख मूंद लेते हैं, यह सोचकर दुख होता है।

किसी की फाइल 2 साल से सरकारी महकमों में घूम रही, कोई कहता है- देश को बेटा दिया, किसी से क्या मांगू? पुलवामा शहीद के गांव को भूली सरकार। बननी थी 2 KM लंबी सड़क, 2 साल में 100 मीटर भी नहीं बनी, चंदा कर गांव वालों ने जिंदा रखी स्मृति।

जिस पुलवामा शहीद के गांव तारेगना मठ जाने में पटना से 1 घंटे लगेगे, वहां 730 दिन बाद भी सरकार नहीं पहुंच पाई। आज ही के दिन पुलवामा आतंकी हमले में मसौढ़ी के तारेगना मठ का एक लाल शहीद हुआ था। CRPF कान्सटेबल संजय कुमार सिन्हा की शहादत की आज दूसरी बरसी है। शहीद के गांव के लिए इन दो वर्षों में सरकार ने कहां तक अपने वादे पूरे किए, इसका उदाहरण तो यही है कि 2 साल में 100 मीटर सड़क भी नहीं बन पाई। सरकार नहीं जागी तो चंदा जमा कर गांव वालों ने शहीद संजय कुमार सिन्हा की स्मृति जिंदा रखी।

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