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गुजरात में संक्रमण, महाराष्ट्र को अलर्ट जारी ...

जानवरों से फैलने वाली एक और बीमारी

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, कांगो बुखार तेजी से फैलने वाली बीमारी है, 10 से 40% मामलों में मरीज की मौत हो जाती है। संक्रमित जानवरों के खून के संपर्क में आने या इनका मांस खाने पर इंसानों में यह बीमारी पहुंच जाती है

गुजरात के कुछ इलाकों में कांगो फीवर के मामले सामने आए हैं। इसका हवाला देते हुए महाराष्ट्र के पालघर में प्रशासन ने अलर्ट जारी किया है। पशुपालन विभाग के डिप्टी कमिश्नर डॉ. प्रशांत कांबले ने कहा है कि गुजरात के कुछ इलाकों में यह बुखार पाया गया है। इसके महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों में फैलने की आशंका है। पालघर गुजरात के वलसाड जिले से लगा हुआ है।

 क्या है कांगो फीवर और कब दिखते हैं इसके लक्षण?

यह वायरल बीमारी खास तरह के कीट (किलनी) के जरिए एक जानवर से दूसरे जानवर में फैलती है। संक्रमित जानवरों के खून के संपर्क में आने या ऐसे जानवरों का मांस खाने पर इंसानों में यह बीमारी फैलती है। सही समय पर बीमारी का पता लगाकर इलाज नहीं किया गया तो 30% मरीजों की मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, इसके लक्षण दिखने में 6 से 13 दिन का समय लगता है।

 कहां से आया कांगो फीवर?

इस बीमारी का पहला मामला 1944 में यूरोप के क्रीमिया में आया था। लेकिन 1956 में अफ्रीका के कांगो में इसी वायरस के मामले सामने आए, इसलिए इस बीमारी का पूरा नाम क्रीमियन-कांगो फीवर रखा गया। हालांकि बोलचाल की भाषा में इसे कांगो फीवर ही कहा जाता है। अब इसका वायरस दूसरे देशों में भी पहुंच रहा है।

कौन से लक्षण दिखने पर अलर्ट हो जाएं?

इससे संक्रमित होने वाले मरीजों में बुखार के साथ मांसपेशियों में दर्द होना, सिरदर्द और चक्कर आना जैसे लक्षण दिखते हैं। कुछ मरीजों को सूर्य की रोशनी से दिक्कत होती है, आंखों में सूजन रहती है। संक्रमण के 2 से 4 दिन बाद नींद न आना, डिप्रेशन और पेट में दर्द के लक्षण भी सामने आते हैं। मुंह, गर्दन और स्किन पर चकत्ते आने के साथ हार्ट रेट भी बढ़ सकता है।

क्या है इसका इलाज?

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, लक्षण दिखने पर मरीजों को एंटीवायरल ड्रग दी जाती है। इसका इलाज ओरल और इंट्रावेनस दोनों तरह से किया जाता है। इसके 30 फीसदी मरीजों की मौत बीमारी के दूसरे हफ्ते में होती है। मरीज अगर रिकवर हो रहा है तो इसका असर 9वें-10वें दिन दिख जाता है। इसकी अब तक कोई वैक्सीन नहीं तैयार की जा सकी है। वैक्सीन न होने के कारण बचाव ही इलाज है।

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