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यहाँ योग्यता नही गांधी जी अनुसार नौकरी मिलती है  ...

शब्द एक पर्यायवाची अनेक

भ्रस्टाचार मात्र एक शब्द परंतु इस का प्रयोग और उपयोग कहाँ कैसे और किसके लिए किया जाता है, तय करता है इसकी महत्वत्ता का गणित। नेता करे तो सेवा, विभाग करे तो शुल्क, जनता करे तो वह मूर्ख।

बलि का बकरा

भ्रस्टाचार मुक्त शासन का वादा कर सत्ता पर आसीन हुई केंद्र सरकार हो या उत्तर प्रदेश की योगी सरकार दोनो ही इस विषय में फेल होती नजर आ रही है। वर्तमान परिवेश एवं परिस्थितियों पर नज़र डालें तो लाख कोशिशों के पश्चात भी भ्रस्टाचार का असुर लगभग हर विभाग में मुंह खोले अपना पेट बख़ूबी पहले की तरह या उससे भी कही अधिक तेजी से  भरता जा रहा है। ऐसा नही है कि सरकार द्वारा इस भ्रस्टाचारी असुर पर लगाम कसने की कोशिश नही की जाती, समय समय पर खूब कोशिशें होती है, कार्यवाही भी होती है परंतु ठीक वैसे जैसे सागर से चंद लोटा पानी निकालने जैसा, क्या कोई फर्क पड़ता है सागर को कुछ लोटे पानी कम होने से वैसे ही नौकरशाही एवं बंदरबाट की इस राजनीति के दौर में बलि का बकरा बना एक आत कार्यवाही पीड़ित के जले पर मरहम लगाने का दिखावा मात्र कर सरकार एवं उसके मातहत अपनी पीठ स्वयं थपथपा लेते है, परंतु या जनता है सब जानती है। 

बेहाल जनता 

कोविड 19 वैश्विक महामारी जिसके प्रकोप ने समूचे विश्व में भूचाल मचा, देश विदेश के प्रत्येक क्षेत्र में चक्का जाम कर समूचे विश्व की सामाजिक एवं आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगा हमारे जीवन चक्र पर अंकुश सा लगा दिया था, जो कि अब धीरे धीरे अपने वास्तविक ढर्रे पर लौटती नज़र आ रही है।

कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के कारण सरकार द्वारा निर्देशित लॉक डाउन के कारण कारोबार ठप पड़े है, मध्यवर्गीय परिवारों के लिए इस विकट समय में सम्मान पूर्वक जीवन यापन जटिलताओं से पूर्ण हो चुका है, स्पष्ट शब्दों में कहना गलत नही होगा पूंजीपति तो जहाँ था वही है, निर्धन कौन है देश में बताना आवश्यक नही, जिस वर्ग पर सबसे अधिक मार पड़ी है वह है मध्यवर्ग जो कि अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने पर विवश हो चला है।

घटता रोज़गार, बढ़ते बेरोज़गार, जय हो सरकार

आर्थिक मंदी के दौर से जूझते देश में नौकरियों में कटौती सौभाविक है। हम अपने आस पास प्रतिदिन देख पढ़ और सुन ही रहे है, कैसे आपराधिक गतिविधियों की बाढ़ सी आ गई है, आत्महत्याओ में पिछले कुछ दिनों में बढ़ोत्तरी हुई है जिसका एक प्रमुख कारण भविष्य को लेकर चिंता, जो कि बिल्कुल गलत है, किसी भी समस्या का हल न हत्या न ही आत्महत्या।

बढ़ती हुई बेरोज़गारी चिंता का विषय न सिर्फ आम जनमानस के लिए है बल्कि सरकारों के लिए भी यह एक बड़ा सिर दर्द है, जिसका समाधान निकालने का हर संभव प्रयास सरकारे(केंद्र/राज्य) की करने का भरसक प्रयास करती रहती है। परंतु वर्तमान परिस्थितियों का अगर गहन अध्यन किया जाए तो कागज़ी खानापूर्ति के आगे कुछ भी संभव नही है यह सब जानते है, चाहे सरकारें कितने लुभावने पिटारे खोल घोषणाएं करती रहे या विपक्ष सरकार की समस्त नीतियों पर विधवा विलाप कर अपनी खोई हुई राजनीतिक ज़मीन पुनः पाने की कोशिश करता रहे सत्यं यही है देश का युवा बेरोज़गारी के दलदल में दस रोज़गार की आस में या तो जरायम की दुनिया की ओर अग्रसर हो चला है या फिर कुंठित हो आत्महत्या जैसे अपराध का बोध हो रहा है।

काम बोलता है

कानपुर नाम तो सुना ही होगा, विश्व विख्यात पहले कभी देश विदेश में लघु उद्योगों, कल कारखानों, चर्म उद्योग, स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी यादों आदि के लिए जाना जाने वाला गंगा किनारे बसा मधुर स्वभावी व्यक्तित्व के धनी लोगो का शहर। किसी न किसी कारण सुर्ख़ियो में बना ही रहता है, भले ही वह दंगे फसाद हो, अराजकता, आपराधिक गतिविधिया, लूटपाट डग्गामारी एवं सबसे प्रमुख भ्रस्टाचार के लिए और क्यो न हो, वैसे तो पूरे देश का हाल एक जैसा ही है परंतु कानपुर ने तो जैसे इस क्षेत्र में प्रथम पायदान पर रहने की ठान ही ली है सरकारी विभागों की मेहरबानी के चलते। 

बात मुद्दे की

अब बात करते है मुद्दे की जो उपर्युक्त लेख का मुख्य उद्देश्य है, भ्रटाचार के असुर का जो कि  सरकारी विभागों में चरम सीमा पर है, मुख्यमंत्री की लाख सख़्ती एवं हिदायतों के पश्चात भी। जहाँ एक ओर योगी सरकार यूपी में नौकरियों के तांता लगाने के दावे कर रही है वही दूसरी ओर सरकारी विभाग के दलाल गैंग पहले से सक्रिय हो ज़रूरतमंद बेरोजगार युवक युवतियों को नौकरी दिलाने का झांसा दे निर्भीक हो धन उगाही कर रहे है।

कोविड 19 संक्रमण के चलते लोग अपनी नौकरियों से हाथ धो रहे है, वही सरकारी नौकरियों पर नियुक्तियों के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेशों के पश्चात आवेदकों की भी बाढ़ आना सौभाविक है, अब कितने कुशल, होनहार एवं पदों पर योग्य व्यक्तियों की नियुक्तियां होगी या तो भविष्य में ही पता चल सकेंगे, परंतु इस सरकारी फरमान के पश्चात जिनकी सबसे अधिक पौ बारह है वह है सरकारी विभाग में गिद्ध दृष्टि जमाए बैठे दलाल, जो  मौके पर चौका मारने को पूरी तैयारी से पूर्ण निष्ठा के साथ बैठे है, इन में से अधिकतर अपने अपने विभागों में किसी न किसी पद पर बरसो से चिपके बैठे है, जड़े इतनी गहरी की अगर आप के अंदर माल गोपाल ख़र्चने का बूत्ता है तो योग्यता भले चपरासी की भी न हो आप बड़े बाबू बन केबिन के अंदर और चपरासी बन बाहर कम चढ़वा चढ़ाने वाला योग्य आवेदक। इन दलालों द्वारा भोले भाले लोगो को सरकारी नौकरी का झांसा दे उनसे मोटी रकम की टप्पेबाज़ी करने में कोई कोर कसर नही छोड़ी जाती। कहना गलत नही होगा सरकार किसी की भी हो भ्रस्टाचार के असुर का पेट हमेशा भरता आया है और ऐसे दलालों के माया जाल के चलते भरता रहेगा।

कानपुर जल निगम (सरकारी विभाग) में उच्च पद पर आसीन महोदय द्वारा ऐसे ही एक मध्यवर्गीय परिवार की विधवा महिला को अपने एक परिचित द्वारा झांसे में लेकर नौकरी का पक्का वादा कर की गई पैसे की टप्पेबाज़ी, फ़ोन पर लगातार महिला से बात कर उसका भरोसा जीत सरकारी बाबू द्वारा खूब की जाती रही महिला से हर विषय म चर्चा जो कि हम लिख नही सकते। अपना काम बनने के पश्चात अब लगातार संपर्क करने पर न तो पीड़ित युवती को मिली नौकरी न ही सरकारी बाबू द्वारा लौटाई जा रही है पीड़ित द्वारा दी गई धन राशि। पीड़िता द्वारा लगाए जा रहे है सहायता के लिए दर दर चक्कर।

क्या यही है भ्रस्टाचार मुक्त शासन का वादा, क्या यूँही होता रहेगा आम जनमानस का उत्पीरण ऐसे भ्रस्टाचारी असुरों द्वारा या होगी कोई कार्यवाही और मिलेगा पीड़ित को न्याय योगी सरकार में।
 

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